Saturday 21 May 2011

ग़ालिब का पहला मुशायरा और वो गजल

 
लिखने को तो पहली पोस्ट के लिए कोई भी गजल जो सबकी जुबाँ पर हों वो भी लिख सकता था लेकिन जो जादू चाचा ग़ालिब के पहले मुशायरे कि गजल मे है वो किसी और मे इतनी आसानी से नहीं मिल सकता. इस गजल को पहली बार पढ़ने और सुनने पर मुझ जैसे बेवकूफ को तो यही लगता है जैसे आप एक परग्रही भाषा को सुन या बोल रहे हैं पर थोडा ध्यान दे कर सुनने और समझने पर वो जादूगरी समझ मे आती है जो चचा ग़ालिब ने अपने शेरो मे डाली थी.

वैसे इस मुशायरे कि सबसे खास बात ये थी कि इसमें चाचा ग़ालिब ने सिर्फ पहला शेर और मकता ही पढ़ा था और वो भी वह बैठे किसी भी शख्श को समझ नहीं आया था, चाहे वो आम दरबारी हों या फिर इब्राहीम जोख और औरंगजेब जैसे उम्दा शायर.

हालाकि मै ये नहीं कह रहा हूँ कि मुझे समझ मे आ गया है, ये सब कम से कम पहली १० बार मे तो रत्ती भर भी समझ मे नहीं आया था, पर हमारी जिद के आगे गजल को भी झुकना पड़ा और खुद का मतलब समझाने के लिए मजबूर होना पडा.

हालाकि चचा ग़ालिब सिर्फ एक महान शायर ही नहीं थे, बल्कि बहोत ही हाजिर जवाब, निडर और शानदार व्यंग्यकार भी थे जो बातों बातो मे तीनो खूबियों दिखा देते थे जो कि उन्होंने अपने पहले मुशायरे मे भी दिखाया ही था.

पहले मुशायरे मे चाचा ग़ालिब ने पहला शेर पढ़ा तो उस शेर कि उर्दू मे जो फारसी कि नफासत थी वो वहाँ बैठे किसी भी शख्स को समझ नहीं आई. पहला शेर खत्म होने पर चचा ग़ालिब ने वाह कर के मिसरा उठाने कि गुजारिश कि तो सामने से जवाब आया "बड़ा भारी है भाई हमसे नहीं उठता".

इसके बाद मिर्जा ग़ालिब ने बादशाह औरंगजेब से मकता( गजल का आखरी शेर) पेश करने कि इजाजत मांगी तो बादशाह बोले
 " मिर्जा - क्या पूरी गजल मे सिर्फ एक ही शेर है "
 तो ग़ालिब साहब ने बड़ी ही निडरता से जवाब दिया हुजूर शेर तो और भी है लेकिन डर है कि तब उसे उठाने के लिए कुली बुलाना पड़ जायेंगे

वैसे इस मुशायरे मे जो मकता मिर्जा ग़ालिब ने पेश किया था उसके बारे मे दो राय है.

एक तो ये है कि उन्होंने गजल का ही मकता पेश किया था जो कि नीचे है

बसकि हूँ, गालिब, असीरी में भी आतश जेर-ए-पा
मू-ए-आतश दीद:, है हल्क: मिरी जंजीर का

इस मकते के बाद लोगो ने कानाफूसी करी लेकिन एक भी वाह नहीं और ग़ालिब महफ़िल छोड़ कर चले गए.

और दूसरा ये कि उन्होंने एक नया शेर उसमे जोड़ा था जो उस वक्त तो उनकी बेइज्जती का सबब बना था लेकिन बाद मे सारी दुनिया ने ग़ालिब कि तारीफ करने के लिए उसी शेर का सहारा लिया वो है

यूँ तो दुनिया मे है और भी सुखनवर बहोत अच्छे
कहते हैं. के ग़ालिब का है अंदाजे बयां और
 
जब ग़ालिब ने ये दूसरा शेर कहा तो उन्हें सुनने को मिला हमें शायरों से शायरी सुनना है खुद कि तारीफ करने वाले लोगो कि खुद के लिए की जाने वाली वाह वाही नहीं.

और इसके बाद चचा ग़ालिब मुशायरा छोड़ कर चले गए

अगली पोस्ट मे पूरी गजल लिखूंगा और कोशिश करूँगा उसके एक-एक शेर और एक-एक अल्फाज को हिंदी और इंग्लिश मे समझाने कि.

तब तक के लिए आपका प्यार दीजिए और इन्तेजार कीजिये

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2 comments:

  1. maine apni puri life mai itni achhi hindi nahi dekhi hai. superb post :: :D

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  2. Thanks Maddy bhai .... hindi meri itni acchi to nahi hai lekin hausla badhane ke liye bahut bahut dhanywad

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