जो अगली गजल मै पेश करने जा रहा हूँ इस गजल का ग़ालिब के दिल से बड़ा करीबी रिश्ता है क्यों की ये गजल उन्होंने किसी और के मुह से तब सुनी थी जब वो खुद बड़े ही बुरे दौर से गुजर रहे थे. पूरा किस्सा फिर कभी अभी पेश है ये गजल
हमेशा की तरह इतना ही कहूँगा पहले रंगीन मतलब पढ़ लीजिए हर शेर के साथ फिर आखरी मे पूरी गजल आप खो जायेंगे ये तय है
यह न थी हमारी किस्मत , कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इन्तेजार होता
हमारी महबूबा से मिलना हमारी किस्मत मे नहीं था
अगर ज्यादा जीते रहते तो ये इन्तेजार भी लम्बा ही होता
तिरे वा'दे पर जिये हम, तो यह जान, झूट जाना
कि खुशी से मर न जाते, अगर ए'तिबार होता
तेरे वादे का जो मतलब था शायद मै जानता था या शायद नही
पर अगर तेरे वादे पर ऐतबार होता तो मै खुशी से ही मर जाता
तिरी नाजुकी से जाना. कि बंधा था अहद बोदा
कभी तू न तोड़ सकता, अगर उस्तुवार होता
तेरे नाजुक होने से हमें पता चला की हम दोनों के बीच एक बंधन था
तू उसे कभी तोड़ नहीं सकती थी, अगर बात हमारे रिश्ते की सच्चाई की होती
कोई मेरे दिल से पूंछे, तिरे तीर-ए-नीमकश को
यह खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
जो दर्द मेरे दिल मे होता है तेरी आँखों के तीर के दिल मे चुभने से
वो रह रह के उठने वाला दर्द कहा होता, अगर ये तीर दिल के पार ही हो गया होता
यह कहाँ कि दोस्ती है, कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारा-साज होता, कोई गमगुसार होता
ये कैसी दोस्ती है की मेरे दोस्त ही मेरे आलोचक बन गए हैं
अगर वो ऐसा ना करते तो कम से सलाह और दिलासा तो साफ साफ दे सकते थे
गम अगरचे: जाँ-गुसिल है, प कहाँ बचे, कि दिल है
गम-ए-इश्क गर न होता, गम-ए-रोजगार होता
कैसी परेशानी है की दुविधा मे पड़ा दिल कमजोर हों गया है
अगर दिल का दुख ना होता, तो काम-धाम ना होने का दुख होता
कहूँ किससे मै कि क्या है, शब-ए-गम बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता
मै किस्से कहूँ की रात को जो दर्द मिलता है वो बहुत दर्दनाक है
मै तो हंस कर मर जाता अगर सिर्फ एक ही बार मरना होता
हुए मरके हम जो रुसवा, हुए क्यों न गर्क-ए-दरिया
न कभी जनाजा उठता, न कहीं मजार होता
मरने के बाद दफ़नाने के लिये हमार हाल इतना बुरा है, इससे अच्छा तो ये होता कि हमे नदी मे फैंक देते
मेरी बदनामी करने के लिए ना जनाजे को ले जाने की दिक्कत होती ना ही दफनाने की
यह मसाइल-ए-तसव्वुफ, यह दीर ब्यान, ग़ालिब
तुझे हम वाली समझते, जो न बाद ख्वार होता
ओ ग़ालिब, हम तुझे सही समझते, तेरे लगाए अपराधों को सही मान लेते
अगर तू पीता न होता और वो अपराध सिद्ध कर चूका होता
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यह न थी हमारी किस्मत , कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते, यही इन्तेजार होता
तिरे वा'दे पर जिये हम, तो यह जान, झूट जाना
कि खुशी से मर न जाते, अगर ए'तिबार होता
तिरी नाजुकी से जाना. कि बंधा था अहद बोदा
कभी तू न तोड़ सकता, अगर उस्तुवार होता
कोई मेरे दिल से पूंछे, तिरे तीर-ए-नीमकश को
यह खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
यह कहाँ कि दोस्ती है, कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारा-साज होता, कोई गमगुसार होता
गम अगरचे: जाँ-गुसिल है, प कहाँ बचे, कि दिल है
गम-ए-इश्क गर न होता, गम-ए-रोजगार होता
कहूँ किससे मै कि क्या है, शब-ए-गम बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता
हुए मरके हम जो रुसवा, हुए क्यों न गर्क-ए-दरिया
न कभी जनाजा उठता, न कहीं मजार होता
यह मसाइल-ए-तसव्वुफ, यह दीर ब्यान, ग़ालिब
तुझे हम वाली समझते, जो न बाद ख्वार होता
अगर और जीते रहते, यही इन्तेजार होता
तिरे वा'दे पर जिये हम, तो यह जान, झूट जाना
कि खुशी से मर न जाते, अगर ए'तिबार होता
तिरी नाजुकी से जाना. कि बंधा था अहद बोदा
कभी तू न तोड़ सकता, अगर उस्तुवार होता
कोई मेरे दिल से पूंछे, तिरे तीर-ए-नीमकश को
यह खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता
यह कहाँ कि दोस्ती है, कि बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारा-साज होता, कोई गमगुसार होता
गम अगरचे: जाँ-गुसिल है, प कहाँ बचे, कि दिल है
गम-ए-इश्क गर न होता, गम-ए-रोजगार होता
कहूँ किससे मै कि क्या है, शब-ए-गम बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना, अगर एक बार होता
हुए मरके हम जो रुसवा, हुए क्यों न गर्क-ए-दरिया
न कभी जनाजा उठता, न कहीं मजार होता
यह मसाइल-ए-तसव्वुफ, यह दीर ब्यान, ग़ालिब
तुझे हम वाली समझते, जो न बाद ख्वार होता